अजनबी की तरह (नज़्म) // आबिद अली मंसूरी!
जब चले थे कभी
हम
अनजान राहों पर..
एक साथ
हमसफ़र बनकर,
कितनी कशिश थी
मुहब्बत की..
उस
पहली मुलाकात में,
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image by google! |
चलो..! फिर चलें हम
आज
उसी मुकाम पर
जहां मिले थे कभी..
हम
अजनबी की तरह!
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___ आबिद अली मंसूरी!
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