Sunday 21 June 2015

बिन तेरे// आबिद अली मंसूरी!

कितने तल्ख हैँ लम्हे
तेरे प्यार के वगैर
यह ग़म की आंधियां
यह तीरगी के साये
जैसे कोई ख़लिश
हो हवाओँ मेँ..
डसती हैँ मुझको पल-पल
पुरवाइयां
तेरी यादोँ की
बे रंग सी लगती है
ज़िंदगी अब तो
कुछ भी तो नहीँ जैसे
इन फिज़ाओँ मेँ...बिन तेरे!


__आबिद अली मंसूरी

अक्स तेरा..// आबिद अली मंसूरी!


क्या मैं.. आकाश नहीं छू सकती?




तेरे इन्तेज़ार का मौसम!

सजी हैँ ख़्वाब बनकर
जुगनुओँ की तरह
मासूम हसरतेँ दिल की
हिज़्र की पलकोँ पर...

यह टीसती हवायेँ
यह लम्होँ की तल्खियां
मचलने लगी है
हर तमन्ना
वक्त की आगोश मेँ..
मुन्तज़िर है आज भी दिल
किसी मख़्सूस सी
आहट के लिए..

यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ
यह प्यार का मौसम
कितना है हसीँ
तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!
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                                         ___आबिद अली मंसूरी
Tags: नज़्म