तुझे पाने की जुस्तजू में
तेरा एहसास लिए
रोज लड़ता हूं मैं
तन्हाइयों से अपनी,
चाहत की रहगुजर पर
अक्सर दे जाते हैं
ग़म की सौगात
और हवा मेरे जख्मों को,
कितने संगदिल हैँ
यह
तेरी यादों के सिलसिले!
तेरा एहसास लिए
रोज लड़ता हूं मैं
तन्हाइयों से अपनी,
चाहत की रहगुजर पर
अक्सर दे जाते हैं
ग़म की सौगात
और हवा मेरे जख्मों को,
कितने संगदिल हैँ
यह
तेरी यादों के सिलसिले!
__आबिद अली मंसूरी
बहुत खूब
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