Sunday, 21 June 2015

अक्स तेरा..// आबिद अली मंसूरी!




यह दिलकशी का आलम
यह ख़्यालोँ की अंजुमन,
हमसफर बन गयी हैँ जैसे
हिज़्र की तन्हाइयां..
हसरतोँ की आगोश मेँ
ली हैँ धड़कनोँ ने
फिर
अंगड़ाइयाँ चाहत की..
फूलोँ मेँ निहित खुश्बू की तरह
एक नयी सहर की आस लिए
आँखोँ मेँ उतर आया है जैसे
झिलमिल-झिलमिल
अक्स तेरा..!
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----->_आबिद अली मंसूरी
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