सजी हैँ ख़्वाब बनकर
जुगनुओँ की तरह
मासूम हसरतेँ दिल की
हिज़्र की पलकोँ पर...
जुगनुओँ की तरह
मासूम हसरतेँ दिल की
हिज़्र की पलकोँ पर...
यह टीसती हवायेँ
यह लम्होँ की तल्खियां
मचलने लगी है
हर तमन्ना
वक्त की आगोश मेँ..
मुन्तज़िर है आज भी दिल
किसी मख़्सूस सी
आहट के लिए..
किसी मख़्सूस सी
आहट के लिए..
यह मंज़र यह फ़िज़ायेँ
यह प्यार का मौसम
कितना है हसीँ
तेरे इन्तेज़ार का मौसम..!
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___आबिद अली मंसूरी
Tags: नज़्म
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